नरक चतुर्दशी : नरक चतुर्दशी क्यों मनाते है , जाने नरक चतुर्दशी तिथि, मुहूर्त , पूजा विधि , महत्व , चतुर्दशी की कथा |

नरक चतुर्दशी : (Narak Chaturdashi )

नरक चतुर्दशी
नरक चतुर्दशी

नरक चतुर्दशी दीपावली के 5 दिन के त्यौहार में से एक त्यौहार है , जो दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को मनाया जाता है |इस त्यौहार को कई नामो से जाना जाता है , जिनमे भूत चतुर्दशी, रूप चौदश , छोटी दिवाली, नरक चतुर्दशी शामिल है | पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन यम देवता की पूजा की जाती है |इस दिन को यम की पूजा के लिए विशेष माना जाता है |यम देवता को मृत्यु का देवता माना जाता है |

हिन्दू पंचांग के अनुसार नरक चतुर्दशी कार्तिक मास के विक्रम सवंत के दौरान चन्द्रमा के घटते 14 वें दिन होता है |नरक चतुर्दशी का पालन करने से जीवन से नकारात्मकता , दुष्टता र आलस्य दूर होता है |हर व्यक्ति भगवन की पूजा – अर्चना करते है अपने जीवन में सुख – शान्ति की भगवान् से कामना करते हैं और भगवन से आशीर्वाद मंगाते है |नरक चतुर्दशी के त्यौहार में भी लोग यम देवता की पूजा करते है तथा अपने जीवन से नकारात्मकता , दुष्टता , आलस्य को दूर करने की कामना करते है |

नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है | घर को साफ़- सुथरा करके घर में दिए जलाए जाते है |पटाखे जलाए जाते है |घर में तरह -तरह के व्यंजन बनाये जाते है |घर परिवार में सब मिलकर इस त्यौहार को मनाते है .सारा वातावरण खुशियों और मस्ती से भरा रहता है |

नरक चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है :

हिन्दू धर्मो के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान् विष्णु ने नरकासुर नामक राक्षस का बढ़ किया था | इस लिए इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है |इस दिन भगवान यम की पूजा की जाती है | दीपदान किया जाता है | व्रत रत्नाकर के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की मध्य रात्रि में भगवान हनुमान जी का जन्म हुआ था |इसलिए इस दिन को हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है |इस दिन को हनुमान जयंती के रूप में विशेष पूजा अर्चना करके मनाते है|इसदिन हनुमत दीपदान भी किया जाता है |

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नरक चतुर्दशी तिथि :

नरक चतुर्दशी
नरक चतुर्दशी

हिन्दू पंचांग के अनुसार नरक चतुर्दशी यानि छोटी दिवाली कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है |इस साल नरक चतुर्दशी 12 नवम्बर 2023 दिन रविवार को मनाई जाएगी ||

नरक चतुर्दशी शुभ -मुहूर्त :

इस साल चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 11 नवम्बर दिन शनिवार को दोपहर 01 बजकर 55 मिनट से तथा समापन 12 नवम्बर दिन रविवार को दोपहर 02 बजकर 45 मिनट पर होगा |चतुर्दशी तिथि के समापन से पहले ही नरक चतुर्दशी की पूजा कर लेनी चाहिए |क्योंकि दोपहर बाद अमावश्य लग जाएगी जिसमे deepawali का त्यौहार मनाया जायेगा |

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नरक चतुर्दशी पूजा विधि :

इस दिन को हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार माना गया है |इस दिन यम देवता की पूजा की जाती है | यह दिन यम भगवान की पूजा के लिए विशेष माना जाता है |

पूजा विधि :

  1. इस दिन सुबह जल्दी सूर्योदय से पहले उठकर अपने पूरे शरीर पर तेल या उबटन लगाकर मालिश करे फिर स्नान करना चाहिए |मान्यता है की जो भी सूर्योदय के बाद नहाता है उसके द्वारा साल भर किये गये शुभ कार्यो का फल प्राप्त नही होता |
  2. सूर्योदय के पहले स्नान करे फिर दक्षिण दिशा में मुख करके यम भगवान को प्रणाम करें |ऐसा करने से व्यक्ति द्वारा वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते है |
  3. नरक चतुर्दशी के दिन शाम को पूजा करने के बाद तेल का दीपक जलाएं | दीपक को अपने घर के दरवाजे को चौखट के दोनों तरफ, सड़क पर , अपने कार्य स्थल पर रखें | मान्यता है की ऐसा करने से लक्ष्मी माता का घर में स्थायी निवास होता है |

नरक चतुर्दशी महत्त्व :

नरक चतुर्दशी

  हिन्दू धर्म में , नरक चतुर्दशी के रूप में जाना जाने वाला दिन, जिसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है, बहुत अधिक महत्व और अर्थ रखता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने दुष्ट नरकासुर को हराया और सोलह हजार एक सौ महिलाओं को नरकासुर की जेल से मुक्त करके आशीर्वाद दिया। नरकासुर की जेल में सोलह हजार एक सौ महिलाएं थीं। नरकासुर के निधन ने हमें उसके पिछले अपराधों और गलत कामों से अवगत कराया, और इसके परिणामस्वरूप, इसने हमें अपने जीवन में बुरे कर्मों और अन्याय के कृत्यों से दूर रहने के लिए प्रेरित किया।

नरकासुर ने अनुरोध किया कि उनकी मृत्यु का उत्सव इसलिए मनाया जाए ताकि हम उन गलतियों को न दोहराएं जो उन्होंने अतीत में की थीं। जैसे-जैसे वह अपने जीवन के अंत के करीब पहुंचा, वह अपने द्वारा किए गए सभी गलत कामों से अवगत हो गया और उनके लिए क्षतिपूर्ति करने की कोशिश की। जब हम आज दीपक जलाते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हम अपने सभी नकारात्मक विचारों से छुटकारा पाएं और अपने सभी अपराधों के लिए भगवान से क्षमा मांगें।.

नरक चतुर्दशी समारोह के सबसे आवश्यक पहलुओं में से एक अभ्यंग स्नान है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इस दिन अभ्यंग स्नान करते हैं, वे खुद को नरक में जाने से रोकने में सक्षम होते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन, अभ्यंग स्नान अनुष्ठान या तो लक्ष्मी पूजा के एक दिन पहले  किया जाता है । उस समय जब चतुर्दशी तिथि प्रभावी होती है, मतलब समारोह चंद्रमा के बाद लेकिन सूर्योदय से पहले तक प्रभावी रहता है। अपनी अवधि के दौरान, उत्सव पूजा, आनंद, प्रेम और खुशी से भर जाता है।.

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा :

भूदेवी, जिन्हें अक्सर देवी लक्ष्मी के रूप में जाना जाता है, और भगवान वराह (भगवान विष्णु), दानव नरकासुर के माता-पिता हैं। उन्होंने प्रागज्योतिष नगर के सम्राट के रूप में शासन किया, जो अब असम में स्थित है। दानव साम्राज्य के पिछले राजा घटकासुर को अपदस्थ करने के बाद, नरकासुर सिंहासन पर चढ़ा। उसे इस ज्ञान का आशीर्वाद मिला था कि उनकी माँ ही उनके जीवन का अंत करने वाली होंगी।

एक पुराने मिथक के अनुसार, राक्षस नरक, जो भूमि देवी (लक्ष्मी) और विष्णु की संतान थे, उन्होंने ब्रह्मा के आशीर्वाद की सहायता से महान शक्ति प्राप्त की। आशीर्वाद यह था कि उनकी अपनी मां भूमि देवी ही थीं जो उन्हें मार सकती थीं। इतना अधिक अधिकार दिए जाने पर नरक के अहंकार ने उस पर नियंत्रण कर लिया, और उसने आत्म-संयम का प्रयोग करने की सभी क्षमता खो दी। उसने मनुष्यों और देवताओं दोनों को धमकाना और डराना शुरू कर दिया। इसके अलावा उन्होंने जबरन अदिति के झुमके उतार दिए थे, जिन्हें देवों की माता के रूप में जाना जाता है।

अंततः कृष्ण को नरक को नष्ट करने के उद्देश्य को पूरा करने का काम सौंपा गया था। हमेशा की तरह, चतुर भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा, भूमि देवी के पुत्र नरक के खिलाफ युद्ध में उनके साथ जाने और उनका सारथी बनने के लिए कहा।

नरका का महल मुरासुर नामक राक्षस द्वारा संरक्षित था, जिसके पांच सिर थे। मुरा ने कृष्ण की दिशा में हथियारों से प्रहार किया, लेकिन कृष्ण ने आसानी से प्रत्येक को अपने धनुष और बाण से नष्ट कर दिया। तब कृष्ण ने अपना उड़ता हुआ चक्र उठाया, जिसे सुदर्शन चक्र के नाम से जाना जाता है, और मुरासुर पर फेंक दिया, जिससे मुरा के सभी पांच सिर अलग हो गए। और तत्काल ही वह जमीन पर गिर गया और मुरा की मौत हो गई। इस तरह कृष्ण को “मुरारी” नाम दिया गया।

उसके बाद, कृष्ण और नरकासुर एक दूसरे के सामने आए नरका और कृष्ण के बीच संघर्ष ने पूरे ग्रह को झकझोर कर रख दिया। लड़ाई के बीच में, कृष्ण को एक तीर लग जाता है, और वह बेहोश हो जाते हैं।

सत्यभामा यह सहन करने में असमर्थ थी, इसलिए उसने कृष्ण के धनुष और बाण ले लिए और राक्षस नरका को मार डाला।

यह बताया गया है कि नरका के निधन से ठीक पहले, वह अपनी कमियों और पापों के लिए क्षमा मांगी और अपने माता-पिता से उनके सम्मान में एक त्योहार मनाने के लिए कहा ताकि दूसरों को यह याद दिलाया जा सके कि क्या होता है जब व्यक्ति अपने फूले हुए अहंकार को उन्हें नियंत्रित करने देते हैं।

इसलिए, नरक चतुर्दशी का महत्व बताता है कि अच्छाई और बुराई दोनों एक ही स्रोत से उत्पन्न होती हैं। यह संदेश भी देता है कि समग्र रूप से समाज के कल्याण पर विचार करते समय व्यक्तिगत संबंध अप्रासंगिक हैं। अंत में हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होती है।

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