गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कितने किलोमीटर की है : जाने गोवर्धन पर्वत की ऊँचाई , दूरी|

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कितने किलोमीटर की है :

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कितने किलोमीटर की है

भारत में स्थित गोवर्धन पर्वत भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण और पवित्र स्थल है। गोवर्धन परिक्रमा भक्तों के बीच आध्यात्मिक और धार्मिक यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस परिक्रमा में गोवर्धन पर्वत को पूरी यात्रा की अवधि में चक्कर लगाकर प्रदक्षिणा की जाती है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि गोवर्धन की परिक्रमा कितने किलोमीटरों की होती है।

गोवर्धन की परिक्रमा का अवधि : गोवर्धन की परिक्रमा की लंबाई और यात्रा की अवधि विभिन्न स्रोतों और आचार्यों के अनुसार भिन्न हो सकती है। मान्यताओं के अनुसार, गोवर्धन की परिक्रमा की लंबाई लगभग 21 किलोमीटर होती है। इस परिक्रमा को करने के लिए भक्तों को गोवर्धन पर्वत को पूरी यात्रा में चार यात्रा चक्कर लगाने की आवश्यकता होती है। हर चक्कर में लगभग 5 किलोमीटर की दूरी तय होती है।

गोवर्धन परिक्रमा का मार्ग : गोवर्धन परिक्रमा का मार्ग एक चौराहे के आसपास स्थित है जो पूर्ण चक्करों को पूरा करने के लिए यात्रियों को पथ दर्शन करता है। इस मार्ग में गोवर्धन पर्वत के पवित्र स्थानों को देखने का अवसर मिलता है जिनमें मुख्यतः दान घाटी, राधा कुंड, मान सिंह मंदिर, कुंज बिहारी मंदिर, देवी पीर, जति पुरा, अन्नपूर्णा मंदिर और काली धारा शामिल हैं।

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गोवर्धन परिक्रमा का महत्त्व :

गोवर्धन परिक्रमा का महत्व विशेष होता है भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा में। इस परिक्रमा को करने से भक्तों को निम्नलिखित महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त हो सकते हैं:

  1. आध्यात्मिक संयम का साधना : गोवर्धन परिक्रमा करने से भक्तों को आध्यात्मिक संयम और तपस्या की अवधारणा का अनुभव होता है। परिक्रमा के दौरान भक्त अपने मन को संयमित करते हुए अपने आप से जुड़े विचारों को परिवर्तित करने का प्रयास करते हैं। इसके द्वारा, वे अपने आंतरिक शांति, साधना और ध्यान की स्थिति में प्रवृत्त होते हैं।
  2. भक्ति और प्रेम का संचार : गोवर्धन परिक्रमा करने से भक्तों को भगवान कृष्ण के प्रेम और भक्ति के संदेश को समझने का अवसर मिलता है। गोवर्धन पर्वत के नजदीकी स्थानों पर जगह-जगह भक्तों को श्री कृष्ण के लीलास्थल दिखाए जाते हैं, जिससे उनकी भक्ति और प्रेम का विकास होता है। यह परिक्रमा भक्तों को भगवान के प्रेम और भक्ति के प्रतीकों के प्रतीक में संपूर्ण होने का अनुभव कराती है।
  3. सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों का निर्माण : गोवर्धन परिक्रमा आपसी भावना, सामरस्य, और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देती है। भक्तों को परिक्रमा के दौरान अन्य साधकों, साधु-संतों और भक्तों के साथ संगठित होकर चलना पड़ता है। यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजन के रूप में कार्य करता है, जहां भक्त अन्य लोगों के साथ सहयोग, प्रेम और समर्पण का अनुभव करते हैं। नरक चतुर्दशी

गोवर्धन परिक्रमा कब और कैसे करें :

गोवर्धन परिक्रमा का आयोजन प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा के दिन, जोकि हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है, किया जाता है। इस दिन भक्त गोवर्धन पर्वत की पूजाअर्चना करते हैं और परिक्रमा की यात्रा पर निकलते हैं।

गोवर्धन परिक्रमा की प्रारंभिक यात्रा गोवर्धन पर्वत के मुख्य मंदिर, गोवर्धनेश्वर मंदिर से होती है। यात्रियों को पर्वत की पूजा करके वामण मंदिर, दान घाटी, जति पुरा, राधा कुंड, कुंज बिहारी मंदिर आदि के रूप में महत्वपूर्ण स्थानों का दर्शन करते हुए परिक्रमा की पूर्णता की जाती है। यात्रा के दौरान भक्त गोवर्धन पर्वत को पूरी यात्रा में चार यात्रा चक्कर लगाते हैं। प्रत्येक चक्कर में लगभग 3.5 किलोमीटर की दूरी तय होती है। यात्रा पूरी होने पर भक्त फिर से गोवर्धनेश्वर मंदिर में लौटते हैं और प्रार्थना करते हैं।

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गोवर्धन परिक्रमा का आयोजन स्थानीय आचार्यों द्वारा किया जाता है और भक्तों को इसकी विधि और यात्रा के तरीके की जानकारी उन्हीं से प्राप्त करनी चाहिए। उन्हें आपको सही मार्गदर्शन और आवश्यक सूचना प्रदान करेंगे और आपको गोवर्धन परिक्रमा के दौरान अपनी आध्यात्मिक अनुभव करने का मौका मिलेगा।

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमाके नियम :

  • गोवर्धन परिक्रमा के नियमगोवर्धन परिक्रमा एक दिन में पूरी की जाती है यदि आप बिमार हैं तो आप धीरे- धीरे यह परिक्रमा पूरी कर सकते हैं।
  • गोवर्धन परिक्रमा में यदि कोई व्यक्ति परेशानी में है तो उसकी समस्या का समाधान करने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने से आपको पुण्य फलों की प्राप्ति होगी।
  • परिक्रमा में दंडवत प्रणाम या साष्टांग प्रणाम करते समय शरीर के आठ अंग दोनों भुजाएं,दोनों पैर, दोनों घूटने, सीना, मस्तक और नेत्र जमींन के संपर्क में होने चाहिए।
  • गोवर्धन परिक्रमा करते समय प्रारंभ में कम से कम पांच और अंत में कम से कम एक दंडवत या साष्टांग प्रणाम अवश्य करें।
  • गिरिराज जी के कुंडो में स्नान करते समय साबून, तेल व शैम्पू आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • गिरिराज जी के कुंडो में स्नान करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा प्रारंभ करने तथा पूरी करने का कोई निश्चित समय नही है। परिक्रमा दिन या रात में कभी भी प्रारंभ की जा सकती है। लेकिन आप जहां से परिक्रमा प्रारंभ करें आपको वहीं से परिक्रमा समाप्त करनी होगी।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय लगातार भगवान के नाम का जाप करते रहना चाहिए।
  • शिव पुराण के अनुसार मनुष्य को तीर्थ स्थानों में सदा स्नान ,दान व जप आदि करना चाहिए। क्योंकि स्नान न करने पर रोग, दान न करने पर दरिद्रता और जप न करने पर मूकता का भागी बनना पड़ता है।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा नंगे पैर की जाती है। परिक्रमा करते समय जूते , चप्पल न पहनें। अगर कोई व्यक्ति कमजोर हो या फिर कोई छोटा बच्चा साथ में हो तो रबड़ की चप्पल या फिर कपड़े के जूते प्रयोग किए जा सकते हैं।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय किसी पर भी क्रोध नहीं करना चाहिए और न हीं किसी को अपशब्द या कटू वचन बोलने चाहिए।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय अहिंसा धर्म का पालन करें। किसी भी जंतु को कोई नुकसान न हो इस प्रकार से परिक्रमा करें।
  • शास्त्रों के अनुसार तीर्थ स्थानों पर किए गए पुण्य कार्यों का फल हमें कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है। इसलिए तीर्थ स्थान पर हमेशा पाप कर्म से बचना चाहिए।

गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर निम्न दार्शनिक स्थल है :

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कितने किलोमीटर की है
  1. दानघाटी: दानघाटी गोवर्धन मार्ग की प्रारंभिक और प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह स्थान भगवान कृष्ण और भक्त प्रहलाद के बाल लीला स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  2. मानसी गंगा गोवर्धन: मानसी गंगा गोवर्धन उत्पादन स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह स्थान भक्तों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है, जहां गंगा जल उत्पन्न होती है।
  3. अभय चक्रेश्वर मंदिर: अभय चक्रेश्वर मंदिर गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर स्थित है। यह स्थान श्री कृष्ण के अभय चक्र की स्थापना के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  4. कुशम सरोवर: कुशम सरोवर गोवर्धन पर्वत के पास स्थित है और भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। इस सरोवर को मान्यता प्राप्त है कि श्री कृष्ण ने यहां खुद नामदेव को अपने पदों का दर्शन दिया था।
  5. सुरभी कुंड: सुरभी कुंड गोवर्धन पर्वत के पास स्थित है और यहां श्री कृष्ण ने गौवत्स को अपने स्पर्श से वृद्धि कर दी थी। यह स्थान भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है।
  6. राधा कुंड: राधा कुंड गोवर्धन पर्वत के पास स्थित है और यहां राधा और कृष्ण का लीला स्थल है। यह स्थान भक्तों के लिए आध्यात्मिकता और प्रेम का संचार कराता है।
  7. जतीपुरा (गिरिराज इंद्रा मान भंग पूजा मुखारविंद): जतीपुरा गोवर्धन पर्वत पर स्थित है और यहां गिरिराज इंद्र मान भंग पूजा मुखारविंद के रूप में मान्य

गोवर्धन परिक्रमा की ऊँचाई :

गोवर्धन पर्वत की ऊँचाई लगभग 80 फीट (24 मीटर) है। यह पर्वत ब्रज भूमि में एक प्रमुख धार्मिक स्थल है और भगवान कृष्ण के लीलास्थलों के रूप में मान्यता प्राप्त है। गोवर्धन पर्वत पर चढ़ाई करने के दौरान आपको इसकी ऊँचाई को पार करने का अनुभव होगा और आपको पर्वत के प्रमुख स्थलों का दर्शन करने का अवसर मिलेगा।

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