
शरद पूर्णिमा की कथा :
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि के व्रत का बहुत महत्त्व है |प्रत्येक माह में एक पूर्णिमा होती है , तथा साल में 12 पूर्णिमा तिथि होती है | किन्तु अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है |इस अश्विनी मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है |शरद पूर्णिमा की कथा .
हिन्दू धर्म में हर माह में आने वाली पूर्णिमा का ख़ास महत्त्व है |इन सभी पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा को सबसे विशेष कल्याणकारी पूर्णिमा माना गया है |अश्विनी मास में आने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है |शरद पूर्णिमा को कौमुदी पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते है |शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा धरती के सबसे निकट होता है तथा चन्द्रमा का आकार बहुत बड़ा होता है |शरद पूर्णिमा का पर्व रात में चन्द्रमा की दुधिया रौशनी के बीच मनाया जाता है |शरद पूर्णिमा की कथा .
ऐसी मान्यता है की चन्द्रमा अपने पूरे साल में केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है |शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र देवता की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है |शरद पूर्णिमा का व्रत विशेष फल देने वाला होता है | इस साल 2023 में शरद पूर्णिमा का व्रत 28 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को है |शरद पूर्णिमा की कथा .
शरद पूर्णिमा तिथि , शुभ मुहूर्त :

हिन्दू धर्म में उदयातिथि के व्रत को ही अच्छा और शुभ माना जाता है | इस साल उदयातिथि के अनुसार शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर को है |पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 28 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 17 मिनट से , तथा समापन 29 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 53 मिनट में होगी |शरद पूर्णिमा के दिन चार योग का निर्माण हो रहा है – गजकेसरी योग,बुधादित्य योग,शश योग,और सिद्धि योग |शरद पूर्णिमा की कथा .
इन योगों के कारण इस साल की शरद पूर्णिमा बहुत ख़ास मानी जा रही है
पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है |शरद पूर्णिमा के दिन से ही शरद ऋतू का आगमन होता है |शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की दुधिया रौशनी में दूध की खीर बनाकर रखी जाती है | जिससे चन्द्रमा की किरणों से होने वाली अमृत की वर्षा की कुछ बुँदे खीर पर पड जाए | फिर बाद में उस खीर को प्रसाद बनाकर सब खाते है | मान्यता है की जो भी इस खीर को खाता है उसके शरीर के सारे रोग दूर हो जाते है |शरद पूर्णिमा की कथा .
शरद पूर्णिमा महत्त्व :
शरद पूर्णिमा का व्रत बहुत फलदायी होता है |कहा जाता है की भगवान श्री कृष्ण चन्द्रमा की सभी सोलह कलाओं से युक्त थे |शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों संग रास लीला की थी ,जिसे महा रास कहा जाता है |मान्यता है की शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा से निकलने वाली किरणे चमत्कारी गुणों से परिपूर्ण होती है |शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है | माँ लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है |शरद पूर्णिमा की कथा
शरद पूर्णिमा का व्रत माताएं अपने संतान की मंगल कामना तथा संतान की लम्बी उम्र के लिए रखती है |और देवी देवताओं की पूजा करती है |मान्यता है की शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की किरणे मनुष्य के शरीर पर पड़े तो बहुत शुभ माना जाता है |चन्द्रमा के प्रकाश को कुमुद कहा जाता है |
शरद पूर्णिमा के अन्य नाम :
गुजरात – शरद पूर्णिमा – इस दिन वह के लोग गरबा खेलते है एवं रास करते है |
बंगाल – लोक्खी पूजो – देवी लक्ष्मी के लिए विशेष भोग बनता है |
मिथिला – कोजगाहर
शरद पूर्णिमा पूजा विधि :

शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी ,भगवान् विष्णु. और चन्द्र देव की पूजा करने का विधान है |शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने से घर में धन धान्य और सुख -समृद्धि की वृद्धि होती है |शरद पूर्णिमा की पूजा विधि –
- सर्वप्रथम शरद पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मो से निवृत्त होकर स्नान करें |
- शरद पूर्णिमा के दिन नदी, तालाब में नहाना श्रेष्ठ माना जाता है |
- नदी तालाब में नहाना संभव न हो तो घर में ही जल में गंगाजल डाल कर स्नान करे|
- स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहने , सूर्य को अर्घ्य देते हुए व्रत का संकल्प ले |
- इस दिन अन्न का सेवन न करें | इस दिन पूजा के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है |
- शाम के समय गाय के दूध से खीर बनाये |खीर को खुले आसमान में रखे जिससे चन्द्रमा की किरणे खीर पर पड़े|शरद पूर्णिमा की कथा.
- संध्या के समय में चन्द्रोदय के बाद पूजा घर की साफ़-सफाई करें |
- सभी प्रतिमाओं में गंगाजल का छिडकाव करें |
- देवी लक्ष्मी और भगवान् विष्णु की पूजा करे तिलक लगाये |
- अपनी क्षमता के अनुसार संख्या में घी के दीपक जलाएं |
- सभी देवी- देवताओं की पूजा अर्चना करने के बाद अखंड सौभाग्य की कामना करे |
- पूजा के बाद शरद पूर्णिमा की कथा पढ़ें |कथा के बाद माता लक्ष्मी की आरती करें और
- भगवान् विष्णु की आरती करे |फिर पूजा समाप्त करें |
- देवी- देवताओं की पूजा के बाद चन्द्र दर्शन करें तथा चन्द्रदेव की पूजा करें |
- केले के पत्ते में खीर रखकर चन्द्रदेव को भोग लगायें |
- चन्द्रमा को प्रणाम करे और परिवार के सभी लोगो के लिए निरोगी , मंगल जीवन के लिए प्रार्थना करे |
- चन्द्रमा की रौशनी में रखी खीर को सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण करें |
शरद पूर्णिमा व्रत कथा :

शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोपियों संग महारास रचाने से तो जुड़ी ही है लेकिन इसके महत्व को बताती एक अन्य कथा भी मिलती है जो इस प्रकार है। मान्यतानुसार बहुत समय पहले एक नगर में एक साहुकार रहता था। उसकी दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्री पूर्णिमा को उपवास रखती लेकिन छोटी पुत्री हमेशा उस उपवास को अधूरा रखती और दूसरी हमेशा पूरी लगन और श्रद्धा के साथ पूरे व्रत का पालन करती।
समयोपरांत दोनों का विवाह हुआ। विवाह के पश्चात बड़ी जो कि पूरी आस्था से उपवास रखती ने बहुत ही सुंदर और स्वस्थ संतान को जन्म दिया जबकि छोटी पुत्री के संतान की बात या तो सिरे नहीं चढ़ती या फिर संतान जन्मी तो वह जीवित नहीं रहती। वह काफी परेशान रहने लगी।शरद पूर्णिमा की कथा .
उसके साथ-साथ उसके पति भी परेशान रहते। उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाकर उसकी कुंडली दिखाई और जानना चाहा कि आखिर उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। विद्वान पंडितों ने बताया कि इसने पूर्णिमा के अधूरे व्रत किये हैं इसलिये इसके साथ ऐसा हो रहा है। तब ब्राह्मणों ने उसे व्रत की विधि बताई व अश्विन मास की पूर्णिमा का उपवास रखने का सुझाव दिया।शरद पूर्णिमा की कथा .
इस बार उसने विधिपूर्वक व्रत रखा लेकिन इस बार संतान जन्म के पश्चात कुछ दिनों तक ही जीवित रही। उसने मृत शीशु को पीढ़े पर लिटाकर उस पर कपड़ा रख दिया और अपनी बहन को बुला लाई बैठने के लिये उसने वही पीढ़ा उसे दे दिया। बड़ी बहन पीढ़े पर बैठने ही वाली थी उसके कपड़े के छूते ही बच्चे के रोने की आवाज़ आने लगी।
उसकी बड़ी बहन को बहुत आश्चर्य हुआ और कहा कि तू अपनी ही संतान को मारने का दोष मुझ पर लगाना चाहती थी। अगर इसे कुछ हो जाता तो। तब छोटी ने कहा कि यह तो पहले से मरा हुआ था आपके प्रताप से ही यह जीवित हुआ है। बस फिर क्या था। पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व पूरे नगर में फैल गया और नगर में विधि विधान से हर कोई यह उपवास रखे इसकी राजकीय घोषणा करवाई गई।शरद पूर्णिमा की कथा .
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