आज हम इस पोस्ट में जानेंगे की 2023 अगस्त में कजलियाँ कब है |सावन महीने की पूर्णिमा को रक्षाबंधन मनाया जाता है | रक्षाबंधन के दूसरे दिन भाद्रपद की प्रतिपदा को कजलियाँ का त्यौहार मनाया जाता है |इसे भुजरिया पर्व भी कहते है इस साल यानि 2023 में कजलियाँ 31 अगस्त 2023 को मनाई जाएगी |

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कजलियाँ पर्व का महत्त्व
मध्य प्रदेश के बघेलखंड और बुंदेलखंड के जिलों में कजलियाँ का पर्व मनाया जाता है | पहले इस पर्व की पबहुत महत्व थी लेकिन समय के साथ और लोगों की व्यवस्थता के कारन यह पर्व अब बिलुप्त होता जा रहा है , अब कुछ ही घरो तक यह पर्व सीमित रह गया है|कजलियाँ कब है |
कजलियाँ पर्व कब मनाया जाता है :
कजलियाँ यानी सावन के महीने में रक्षाबंधन के ठीक दूसरे दिन पारंपरिक गीतों और एक दूसरे में मिलन का त्यौहार है|यह पर्व मध्यप्रदेश के बघेलखंड और बुन्देल खंड में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता था , लेकिन आधुनिकता की दौड़ और , लोगो की व्यवस्थता के चलते यह पर्व कुछ घरों तक ही सीमित रह गया है|कजलियाँ कब है |
कजलिया किसे कहते हैं :

गेहूं , जौ , बांस के बर्तन और मिटटी इस पर्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है , इस पर्व में महिलायें नागपंचमी के दूसरे दिन खेत से मिटटी लाती है और बांस के बर्तन में मिटटी भर कर उसमे गेहूं और जौ बोती है |रक्षाबंधन तक इसमें पानी डालती है , इसकी सेवा करती है,देखभाल करती है , इसमें उगने वाले गेहूं और जौ के छोटे-छोटे पौधों को ही कजलिया कहते है | कजलियाँ कब है |प्रदोष व्रत कब है2023 लिस्ट : जानने के लिए यह क्लिक करें :
कजलिया पर्व का महत्त्व :

कजलिया के पौधों को किसान देख कर यह अनुमान लगाते थे की, इस बार फसल कैसी होगी |कजलिया के दिन घर की लड़कियां कजलिया तोड़कर घर के पुरुषों के कानों में लगाती है और घर के पुरुष उन्हें शगुन के तौर पर कुछ रूपए देते है |कजलिया लगाकर सभी लोग एक-दुसरे के लिए कामना करते है की सभी कजलिया की तरह खुशहाल रहे और धन-धान्य से भरपूर रहे |2023 में रक्षाबंधन कब है : जानने के लिए यहाँ क्लिक करें :
इसलिए इस कजलिया पर्व को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है | कजलियाँ कब है |
नागपंचमी के दूसरे दिन इसे बोते थे, फिर महिलाएं रक्षाबंधन के दूसरे दिन प्रतिपदा को इसे विसर्जित करने जाती थी |और सब महिलाएं खुशियों के गीत गाती थी |कजलियाँ कब है |
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कजलियाँ पर्व पर मध्यप्रदेश के बघेलखंड का गीत :

“हरे रामा …
बेला फुलाई आधी रात,
चमेली भिनसारे रे ,हारे रे हरे
हरे रामा….
भैया लगवै बेला बाग़,
तोड़न नहीं जानैं रे, हांरे रे हारे
हारे रामा …..
ये गीत मुख्यतः कजलियाँ विसर्जन के समय गया जाता है . गावं की महिलाऐं जब कजलिया विसर्जन को जाती है तब सब मिलकर ये मनोहर गीत गाती है | अप आज के इस दौर में सब विलुप्त होता जा रहा है |कजलियाँ कब है |
पहले गाव में घर की सभी औरतें कजलिया विसर्जन में जाती थी पर | कजलिया का विसर्जन शाम को किया जाता था |विसर्जन के बाद सबसे पहले कजलिया भगवान् को चढाई जाती | फिर सारे परिवार के साथ मनाई जाती है |लेकिन आज के समय में जैसे -जैसे आधुनिकता आती गयी वैसे- वैसे इस पर्व का महत्त्व भी कम होता गया . आज हर व्यक्ति इतना व्यस्त है की उसे इस पर्व के लिए समय ही नही है |लोग अपने में बिजी है , पहले लोग ऐसे त्योहारों में एक दुसरे में मिला करते थे, अब इन त्योहारों का ही महत्त्व ख़त्म होता जा रहा है |”कजलियाँ कब है |
रक्षाबंधन के बाद मनाने जाने वाला यह विशेष त्यौहार हमेशा से बघेलखंड, बुंदेलखंड और आस-पास के जिलों में विशेष महत्त्व रखता है |यहाँ बुन्देली भाषा में कजलिया को भोजरी भी कहा जाता है |कजलियाँ कब है |
कजलियाँ के महत्त्व के बारे में पूछने पर पं. आशीष गौतम “kalyanseva “से बताते है की पहले कजलियाँ पर पर सभी लोग इकठ्ठा होते थे , एक दूसरे से मिलते थे . ख़ुशी का माहौल रहता था . हर प्राणी , हर समाज, हर जाती के लोग एक दूसरे से मिलते थे |वो एक दुसरे से पैलगी(पाँव छोना), प्रणाम, गले मिलना सब कुछ करते थे| अब व्यवस्थता , या ये कहें की पाश्चत्य सभ्यता या कुरीति आ रही है|जिससे धीरे – धीरे इस त्यौहार का महत्त्व कम होता जा रहा है |